एक खत आपके नाम - शोषण
सृष्टि का कोई भी जीव जंतु हो जानवर हो या
फिर इंसान सभी में एक ही समानता नजर
आती है कि हर ताकतवर प्राणी ने कमजोर वर्ग पर राज
किया है, मनुष्य और जानवर में फर्क
बस इतना ही है की जानवर सिर्फ ताकत के जोर पर राज करता है और मनुष्य
एक बुद्धिमान प्राणी होने के कारण ताकत का
स्वरूप ताकत के साथ-साथ अमीरी,चालाकी, बेईमानी, धर्म और व्यापार, राजनीति जैसे कृत्यों
में तबदील हो जाता है। इतिहास के भी पन्नें को पलट कर देखें तो सभी पन्नें चीख- चीखकर
एक ही बात की गवाही देते है कि कमजोर वर्गों पर हमेशा से ही राज हुआ है और भविष्य में
भी हमेशा ऐसा ही होता रहेगा। राज करने का यह तरीका जब समाज पर हावी हो जाता है तो उसे
शोषण के नाम से जाना जाता है या यों कहें की
कमजोर वर्गों पर तानाशाही से या बलपूर्वक हावी होने का दूसरा नाम ही शोषण कहलाता
है।
अधिकतर लोग
शोषण शब्द का अर्थ नहीं जानते है, फिर भी ये तो सत्य है कि वे समझते जरूर है भले ही
शोषण शब्द का जहाँ भी इस्तेमाल होता है, दिमाग
यौन शोषण की तरफ ही इशारा करने लगती है। और आँखों में एक अबला नारी की तस्वीर तैरने
लगती है। पर अगर हम वास्तविकता को देखे तो कुछ वर्ग विशेष को छोड़कर या यों कहें की शोषित करने
वालों को छोड़कर समाज का हर वर्ग शोषण का शिकार नजर आता है। उन कारणों से जनता अच्छी
तरह वाकिफ है फिर भी उनकी अंधी भक्ति करने लगती है। पहले भेड़चाल शब्द भेंड़ों के लिये
इस्तेमाल किया जाता था क्योकि वे बिना अच्छे
बुरे का भेद किये या सोचे समझे अपना नेतृत्व करने वाला भेड़ का साथ देते हुए उसके पीछे-पीछे
दौड़ते रहते है। भले ही उसके साथ उन्हें कुएं में ही कूदना क्योँ न पड़ें। वे ऐसा कर सकते है क्योकि वे जानवर है और उनकी गणना
बुद्धिहीन प्राणियों में होती है। लेकिन जब
यही कृत्य एक समझदार प्राणी करें, मनुष्य करें तो यह विचारणीय हो जाता है। कि कैसे
एक बुद्धिमान प्राणी बिना किसी को जाने, बिना किसी को समझे देखा -देखी में कभी राजनेताओं
के पीछे झंडे लेकर नारा लगाकर राजनीति को बढ़ावा देते है, कभी बाबाओं के पीछे - पीछे
जाकर माला लेकर भगवान को ढूंढने की कोशिश करने लगते है तो कभी व्यापारी का चादर ओढ़
कर समाज को देश को नीलाम करने लगते है । नतीजन जब औद्योगिक विकास होता है तब उस क्षेत्र
में रहने वाले लोगों का शोषण होता है, जब राजनीति बढ़ता है तब पुरे देश में भ्रष्टाचार
फैलता है और जब- जब धर्म बढ़ता है तब - तब सांप्रदायिकता को बल मिलने के साथ - साथ पाखंड
का विकास होता है ये अपने आप में इतने शक्तिशाली है कि पूरा समाज इसके प्रभाव से परेशानियों
से घिर सकता है। और जब ये आपस में मिले तो एक नयी परिस्थिति का जन्म होना निश्चित है।
क्योकि मेरा यह एक सूत्र है:-
व्यापार + राजनीति = महंगाई,
राजनीति + धर्म = भेदभाव,
धर्म + व्यापार = अन्धविश्वास,
जब व्यापार
और राजनीति मिलकर काम करते है तो महंगाई बढ़ता है, जब राजनीति और धर्म मिलकर काम करते
है तो भेदभाव फैलता है और जब -जब धर्म और व्यापार मिलकर काम करते है तो अंधविश्वास
फ़ैलने लगता है। इसलिए मेरा सभी लोगों से अपील
है कि समाज को शोषित होने से बचाना है तो किसी भी कार्य को करने से पहले उसके बारे में अच्छी तरह से जान ले। स्वार्थ सिद्धि के लिये न तो ऐसे किसी औद्योगिक
क्षेत्र को पनपने दे जिससे जनता का शोषण हो, न ही किसी ऐसे राजनेता का सहयोग करें जो
हमारे देश को नीलाम करने पर उतारू हो जाये और न ही के चक्कर में जाएँ जिससे भगवान का
विभाजन हो और
नए भगवान का जन्म हो । आज से ही संकल्प करें कि जनता को इस शोषण चक्र के चक्कर से बचाने
के लिए और समाज और देश के विकास के लिये हम बिना सोचे समझे और बिना किसी को जाने बगैर
ऐसे किसी भी संगठन, राजनेता के साथ ही साथ किसी भी गुरु या बाबाओं का साथ नहीं देंगें।
जीवन ज्योति समिति
कोंडतराई