धर्म (हिन्दू संस्कृति बचाने की एक कोशिश) – 2
हर प्राणी अपने अस्तित्व
को बचाये रखने की कोशिश करता है चाहे उसके लिए उन्हें कोई भी कीमत चुकानी पड़े और तभी
उसका अस्तित्व बचा रह सकता है। इसी सिद्धांतों को इंसानों ने जाना और विभिन्न स्तर
पर इसका प्रयोगात्मक ढंग से प्रयोग भी किया और करता भी आ रहा है। सभी धर्म के लोगों
ने भी इसी सिद्धांतों के आधार पर अपने संस्कृति और धर्म को बचाने के लिए समय-समय पर
विभिन्न उत्सवों और कार्यक्रमों के द्वारा इसका प्रचार प्रसार किया। लेकिन कहते है
न हर एक कार्य की एक सीमा भी होती है, हिन्दू
धर्म को छोड़कर सभी संप्रदाय वालों ने उत्सवों और कार्यक्रमों के द्वारा प्रचार प्रसार
की सीमा को जाना और उस पर नियंत्रण रखा परन्तु हिन्दुओं में यह तरीका संस्कृति और धर्म
का प्रचार प्रसार न रहकर दिखावे में तबदील हो गया। हिन्दू अपने संस्कृति और धर्म को
भूलकर सिर्फ उत्सवों और कार्यक्रमों पर जोर देने लगे। जिसके फलस्वरूप ही धीरे- धीरे
हिन्दू संस्कृति और धर्म का पतन हो रहा है।
हजारो, करोड़ों रुपये का चंदा एकत्र कर गणेश पूजा, दुर्गा पूजा विश्व्कर्मा पूजा जैसे
विभिन्न प्रकार के उत्सव का आयोजन करते है जैसे : -
विवरण
|
निजी स्तर पर मूर्ति पूजा
|
सार्वजनिक स्तर पर मूर्ति
पूजा
|
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निम्न स्तर
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मध्यम स्तर
|
उच्च स्तर
|
निम्न स्तर
|
मध्यम स्तर
|
उच्च स्तर
|
|
मूर्ति
|
500
|
1000
|
2100
|
2500
|
10000
|
50000
|
पंडाल
|
0
|
0
|
1000
|
10000
|
750000
|
210000
|
प्रकाश सजावट
|
200
|
1000
|
5000
|
3000
|
211000
|
500000
|
फूलों की सजावट
|
200
|
1000
|
2000
|
1500
|
20000
|
65000
|
पुरोहित
|
501
|
1111
|
5111
|
1100
|
11111
|
51000
|
प्रिंटिंग (रसीद, बैनर आदि)
|
0
|
0
|
1000
|
1000
|
30000
|
50000
|
बाजा व मनोरंजन
|
2000
|
3000
|
5000
|
3500
|
50000
|
200000
|
कीर्तन मंडली
|
1000
|
2500
|
50000
|
5000
|
105000
|
7500000
|
शोभायात्रा (विसर्जन)
|
500
|
2000
|
10000
|
5000
|
25000
|
200000
|
प्रसाद
|
1000
|
5000
|
20000
|
7000
|
98000
|
500000
|
अन्य विविध
|
500
|
5000
|
10000
|
5000
|
51500
|
1000000
|
कुल योग
|
6401
|
21611
|
111211
|
44600
|
1361611
|
10326000
|
ये आंकलन तो एक गांव
का, एक शहर का सिर्फ एक पंडाल का खर्च है।
न जाने इतने कितने ही गांव, शहर है जहाँ कितने सारे ही पंडाल लगते है और साल
भर में कितने सारे देवी देवताओं की पूजा होती
है तो सोचिये कितने रुपये खर्च होते होंगें। पर करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी यह
उत्सव यह कार्यक्रम सिर्फ धरा का धरा ही रह जाता है क्योकि यह सारा उत्सव और
कार्यक्रम सिर्फ क्षणिक होता है कार्यक्रम के दिनों को छोड़कर यह किसी के मन में भी स्थाई रूप से छाप
नहीं छोड़ पाता है। क्योकि लोग वहां पवित्र मन से जाते ही नहीं है। गरीब प्रसाद रूपी
भोजन ग्रहण करने जाता है, युवा वर्ग आँखों और मन रूपी वासना की तृप्ति के लिए और उम्र
दराज लोग अपना व अपने परिवार के मनोरंजन के
लिए पंडाल में उपस्थित होते है। यहाँ एक बात बता देना तर्कसंगत होगा की धर्म व संस्कृति
मनोरंजन के लिए नहीं होता है वरन यह तो ईश्वर के प्रति हमारी आस्था और विश्वास को सृदृण
करने के साथ ही साथ हमारी संस्कृति को बचाये रखना होता है। मैं यह नहीं कहता हूँ की
सभी लोगों की मानसिकता यही रहती है। कुछ लोग जरूर होंगे जो शांति के तलाश में जाते
होंगे पर मुझे नहीं लगता की उनको शांति मिलती भी होगी क्योकि इतना शोर-ग़ुल में शांति
की तलाश करना कोरी कल्पना ही लगती है। मूर्ति स्थापन से लेकर विसर्जन तक अन्य लोगों
के साथ ही साथ आयोजक भी पूजा स्थल में ही शराब पीकर, अश्लील गाने बजाकर अश्लील नृत्य
करते रहते है। इसके साथ ही वे वहां आये हुए लड़कियों पर कटाक्ष करने से भी नहीं चूकते
है। और हम हाथ पर हाथ रख मौन धारण किये रहते है। तब हमारा ध्यान
हमारे कार्यक्रमों से होने वाले खाद्यान्नों की बर्बादी, प्रदूषणों (ध्वनि, वायु, जल
) पर कहाँ से जा पायेगा। इसका मतलब यह नहीं है की ऐसे उत्सव ऐसे कार्यक्रम बंद कर देने
चाहिए या नहीं होने चाहिए। होने चाहिए जरूर होने चाहिए पर सभी तरह के बरबादियों
एवं प्रदूषणों को रोकते हुए क्योकि इन कार्यक्रमों से कुछ न सही कम से कम लोगों के
मन में कुछ समय के लिए एकता का सूत्रपात तो होता हैं। मेरे कहने का तात्पर्य तो यह
की इस उत्सव, कार्यक्रमों में होने वाले खर्चों में कुछ कटौती करने से है। जिससे हमारे
धर्म व संस्कृति को बचाने के लिए कुछ किया
जा सकें, प्राकृतिक, सांस्कृतिक एवं इतिहासिक
धरोहरों को संरक्षित करने के लिए कुछ किया
जा सकें और कुछ नहीं तो अपने स्तर पर सामाजिक विकास के कुछ कार्य पुस्तकालय की स्थापना,
पुस्तकों एवं धार्मिक पुस्तकों का वितरण, जरुरत मंदों को उचित साधन उपलव्ध कराना, पीने
के लिए प्याऊ का निर्माण, प्रशिक्षण केंद्र, वृक्षारोपण आदि जैसे कार्य किया जा सकें। याद रखें जिस दिन से हम अपने कार्यक्रमों के खर्चों
में से १०% प्रतिशत की बचत कर उनका सदुपयोग करना सीख जायेंगें उस दिन से विकास का नया
अध्याय शुरू हो जायेगा। हमारा समाज, हमारा गांव और हमारा देश
विकास के राह पर एक सुदृण्ड परिभाषा बन जाएगी।
तो आइये आज से ही हम संकल्प ले कि धर्म
व संस्कृति पर होने वाले फिजूल खर्चों को रोक कर उनका उपयोग सामाजिक विकास के कार्यों
के लिए करेंगें। एक बात याद रखें हमने धर्म
व संस्कृति को बचाने के नया मंदिर निर्माण करने की बात नहीं की है उसके स्थान पर हम
यथासंभव प्राचीन मंदिरों को संरक्षित करने
के उपाय कर सकते है।
·
क्या
मंदिरों के निर्माण को नियंत्रित कर, पूजा स्थल को पवित्र नहीं बनाया जा सकता है?
·
क्या
गणेश पूजा, दुर्गा पूजा विश्व्कर्मा पूजा जैसे विभिन्न प्रकार के उत्सव का आयोजन करते
समय हमारे धार्मिक सभ्यता को बचाये रखने के लिए आयोजन में शराब, अश्लील गाने बजाना
एवं अश्लील नृत्य करना बंद नहीं किया जा सकता है?
·
क्या
फिजूल खर्चों को रोक कर उनका उपयोग सामाजिक विकास के कार्यों के लिए नहीं किया जा सकता
है?
उपरोक्त
बातें शायद आपको कडुआ लगे। और आप मुझे हिन्दू विरोधी समझे इसके लिए मैं माफ़ी
चाहता हूँ। और आपको यह बता देना चाहता हूँ कि मेरी लड़ाई हिन्दू या हिंदुत्व्
वादी विचारधारा से नहीं है और मैं न ही धर्म को लेकर कोई विवाद करना चाहता हूँ
क्योकि मैं भी एक हिन्दू हूँ, और मुझे मेरे हिन्दू होने पर गर्व भी होता है , मैं तो
उस व्यवस्था से लड़ना चाहता हूँ, उन तरीकों को बदलने की कोशिश करना चाहता हूँ जो हमारे
संस्कृति को रौंद रहा है, धूमिल कर रहा है, मैं आप लोगों को यह बताने की कोशिश कर रहा
हूँ कि ईश्वर जिसकी हम पूजा करते है जिसका सम्मान करते है उसका न तो हम ही मजाक उड़ाये
और न ही किसी को ऐसा करने दे। अपने अंदर की भावनाओं को जगाये और हमारे भगवान को उचित
सम्मान के साथ-साथ उचित स्थान प्रदान करने में सहयोग प्रदान करें, जिससे हमारे हिन्दू
संस्कृति को सही दिशा दिया जा सके। हिन्दू संस्कृति को बचाये रखा जा सकें। ऐसी
ही एक कोशिश में........
जीवन ज्योति
समिति
ग्राम
/ पोस्ट – कोंडतराई, व्हाया – भुपदेवपुर, जिला - रायगढ़ (छ. ग.) 496661
ई-मेल
– jeevanjyotisamiti2012@gmail.com