दैनिक
पूजा विधान
संसार में सबका
जीवन ही चिन्ताओं से घिरा रहता है और चिन्ता मनुष्य को असहाय और कमजोर बना देती है।
जिसके निवारण के लिए हम यहाँ वहाँ भटकते रहते
है। हिन्दु धर्म में इस तरह के सभी समस्याओं के निवारण एवं ईश्वर प्राप्ति के लिए पुजा का मार्ग श्रेष्ट माना गया है। पुजा
से श्रद्धा और विश्वास का ही जन्म नही होता है अपितु मन में एकाग्रता और दृढ इच्छाशक्ति
का संचार होता है और दृढ संकल्प से हम किसी भी तरह के कार्य को कर पाने में सक्षम हो
पाते है। इसी आशय से हम आपको संक्षिप्त पुजा विधि दे रहे है जिसका ज्ञान प्रत्येक हिन्दू
को अवश्य होना चाहियें और करना चाहिए।
1.
- पूजा का कमरा: - घरो में पूजा के कमरे का अपना ही महत्त्व है, घर में पूजा का एक ही स्थान होना चाहिए, अलग-अलग पूजा स्थान कदापि नहीं होने चाहिएं जहाँ तक हो सकें हर घर में पूजा के लिए एक अलग सा कमरा होना चाहियें। अगर अलग से पूजा का कमरा बनाना सम्भव न हो तो उत्तर दिशा, पूर्व दिशा अथवा घर का ईशान कोण (उत्तर - पूर्व) के कमरे का ईशान कोण (उत्तर - पूर्व) में पूजा के किये व्यवस्थाएं की जा सकती है और जहाँ एकाग्रचित होकर ईश्वर की पूजा और आराधना की जा सकती है। यहाँ एक बात का ध्यान रखें की जब भी आप पूजा करने बैठें तो आपका चेहरा पूर्व दिशा या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए।
2.-
आसन :-
इष्टदेव की स्थापना बिना आसन के नहीं करना चाहिए।
आसन के लिए आम के लकड़ी का समतल तख्ता को ज्यादा शुद्ध माना जाता है। लेकिन इस फैशन के दौर में किसी भी प्रकार के लकड़ी
का तख़्ता, पत्थर या सीमेंट के चबूतरा का उपयोग कर सकते है जिसकी ऊंचाई कम से कम सात
सौ पचास मिली मीटर ( ढाई फिट ) होनी चाहिए।
जिससे आसन में स्थापित मूर्ति या चित्र का चेहरा आपके चहरे के ऊंचाई के बराबर
हो सकें। उसके ऊपर मूर्ति के अनुरूप कपडा बिछाना चाहिए। सामान्य तौर पर शिवजी, सरस्वती माँ और भुवनेश्वरी
माँ के लिए सफ़ेद और बाकि सभी देवताओं के लिए लाल रंग के कपडे का उपयोग किया जाता है।
3.
- आसन व वस्त्र:- पूजा
में जितना इष्टदेव के लिए वस्त्र व आसन का महत्त्व है उतना ही महत्त्व अपने वस्त्र
व आसन का है। पूजा में पहनने के लिए हमेशा सफ़ेद, लाल या पूजा के अनुरूप बिना सिले हुए
कपड़ें (धोती) का उपयोग करें व बिछाने के लिए सूती, कुशा, ऊनी या मोटा कपडा का उपयोग करें। बिना आसन के कभी भी बैठकर या जमीन
पर खड़े होकर पूजा न करें, बिना आसन पूजा व्यर्थ जाती है। पूजा के लिए एक अलग ही कपडा
हो तो बेहतर है जिसका उपयोग सिर्फ पूजा के
लिए करना चाहिए।
4.
- मूर्ति स्थापना:- पूजा के
लिए पत्थर, तांबा, पीतल व अष्टधातु की मूर्ति को श्रेष्ट माना गया है कभी भी प्लास्टिक
की मूर्ति का उपयोग न करें। पूजा के लिए इष्टदेव की तीन अंगुल से ज्यादा बड़ी मूर्ति
को स्थापित न करें। तीन अंगुल से बड़ी मूर्तिओं को स्थापित करने के लिए उनकी प्राण-प्रतिष्ठा
करनी होती है। अत: घर में प्राण-प्रतिष्ठा के बिना इतनी बड़ी मूर्ति नहीं रखनी चाहिए
और प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति की दो बार पूजा और भोग लगाना अनिवार्य माना गया है। अगर
आप चित्र लगाना चाहते है तो कम से कम एक फिट या उससे बड़ा भी चित्र रख सकते है।एक बात
का हमेशा ध्यान रखें इष्टदेव की मूर्ति या चित्र हमारे लिए सजावटी सामान न होकर सम्माननीय और पूजनीय होता है इसलिए घर में जगह-जगह देवी-देवताओं के मूर्ति या चित्र नहीं लगाने चाहिए। अलग-अलग स्थानों पर देवी-देवताओं
के चित्र आदि लगाने से घर के सदस्य हमेशा बेचैन व दुखी रहते हैं।
5.
- कलश स्थापना:-
कलश को हम घड़ा, मटका, सुराही आदि नामों से जानते है l कलश को वैसे तो लक्ष्मी का रूप
मानते है पर इसकी स्थापना एवं पूजा करने से सिर्फ लक्ष्मी की ही नहीं वल्कि आकाश, जल,
थल एवं समस्त ब्रम्हांड की भी पूजा हो जाती है l जिससे हमारे विभिन्न प्रकार के दोषों
का निवारण अपने आप ही हो जाता है और सौभाग्य एवं ऐश्वर्य में वृद्धि होने लगती है इसलिए
घर में निम्न मंत्र का जप करते हुए कलश की स्थापना करनी चाहिए l
गंगे
च यमुने चैव गोदावरी सरस्वति।
नर्मदे
सिन्धु कावेरि जलेSस्मिन् सन्निधिं कुरु।।
कलश स्थापना में निम्न लिखित बातों का
ध्यान देना चाहिए:-
1. कलश स्थापना
के लिए तांबा व पीतल के कलश का इस्तेमाल भी कर सकते है पर कलश पृथ्वी का प्रतिक होने
के कारण लालिमा आभा लिए मिट्टी का कलश अधिक उपयुक्त है l कलश काला या दागदार नहीं होने
चाहिएl
2. कलश की स्थापना
किसी भी धार्मिक अनुष्टान के समय, पूर्णिमा, अमावस्या या किसी भी शुभ तिथि में की जा
सकती है l
3. कलश स्थापना
करने के लिए सर्व प्रथम कलश को स्वक्छ जल से अच्छी तरह धोकर पोछ लेवें l
4. कलश को वस्त्र
पहनने के लिए कलश के गले में मौली (रक्षासूत्र ) को तीन बार लपेटना चाहिए l
5. सत्य का सतत
विकास की ओर अग्रसर होने के लिए प्रेरित करने वाला सतिया (स्वास्तिक ) का निशान कलश
के मध्य में रक्त चन्दन या सिंदूर से बनाने चाहिए l
6. उत्तर- पूर्व
दिशा (ईशान कोण) में लक्ष्मी, कुबेर और जीवनदायनी जल का स्थान होने के कारण कलश की
स्थापना पूजा घर के ईशान कोण में करनी चाहिए l
7. लकड़ी के बजोट
या आसन पर सफ़ेद कपड़ा बिछाकर चावल या रंगोली से नौ ग्रह का प्रतीकात्मक अष्टदल बनाकर
कलश को उसके ऊपर स्थापित करनी चाहिए l
8. कलश में गंगाजल,
विभिन्न तीर्थ स्थलों के नदियों का जल या स्वक्छ जल भरना चाहिए l
9. कलश के अन्दर
सर्वोषधि (दूब, वच, कुश, हल्दी, तुलसी आदि), पंचरत्न (सोना, चांदी, तांबा, पीतल, लोहा
), गोल सुपारी, चावल के कुछ दाने, मधु, इत्र, सिंदूर, तांबे का सिक्का या कोई भी एक
या दो रुपये का सिक्का डालने चाहिए l
10. कलश के मुहं
में समस्त शोक एवं दोषों के निवारण और दसों दिशाओं को इंगित करने के लिए अशोक या आम
का दस पत्ता लगाना चाहिए l
11. कलश का कटोरीनुमा
ढक्कन जिसे पूर्णपात्र कहा जाता है, पूर्णपात्र में लक्ष्मी स्वरुपणी धान डालकर कलश
के मुंह को ढक देना चाहिए l
12. नारियल में
लाल कपडे या मौली (रक्षासूत्र ) का धागा लपेट कर उसके ऊपर स्थापित करना चाहिए l ध्यान
रहे नारियल का नोकीला भाग आकाश तत्व को इंगित करता है इसलिए नोकीला भाग सदैव ऊपर होने
चाहिए l
13. तत्पश्चात धुप,
दीप, फुल एवं मंत्रोपचार द्वारा विधि पूर्वक कलश का पूजन करना चाहिए l
14. कलश के पानी
को कभी सूखने न दे, हो सके तो हर पूर्णिमा या किसी भी शुभ तिथि में कलश में दोबारा
विधिवत पानी भरने चाहिए l
6.
- शंखनाद:-
जिस घर में शंख होता है वहां लक्ष्मी का वास होता है। शंख देवस्वरूप होता है जिसके
मध्य में वरुण, पृष्ठ में ब्रह्मा तथा अग्र में गंगा और सरस्वती नदियों का वास है।
शंख बजाने से ॐ की मूल ध्वनि का उच्चारण होता है तथा शंखनाद से नकारात्मक शक्तियों
का नाश होता है इसलिए पूजा करने के पहले शंखनाद जरूर करनी चाहियें।
7.
- पवित्रीकरण:- (मंत्र
उच्चारण करते हुए कुश से शरीर जल पर छिड़के):-
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्था गतोsपि वा l
या
स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्रामायंतर: शुचि: ll
8.
- आचमन:
-
तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें तुलसी डालकर पूजा स्थल पर रखा जाता है। यह जल आचमन
का जल कहलाता है। इस जल को निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए तीनो बार जल पीवे, माना
जाता है कि ऐसे आचमन करने से पूजा का फल दोगुना मिलता है।:-
ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा l
ॐ अमृतापिधानमसि स्वाहा l
ॐ सत्यं यशः श्रीर्मयी श्री: श्रयंता स्वाहा l
9.
- शिखा बंधन:- (सिर
पर हाथ रखकर मंत्र का उच्चारण करे जिससे आपके हाथों की ऊर्जा सिर से होते हुए पुरे
शरीर में प्रवाहित हो और आप सशरीर पूजा के लिए तैयार हो सकें):-
ॐ चिद्रूपिणि महामाये दिव्य तेजः समन्विते l
तिष्ठ देवि! शिखामध्ये तेजो वृद्धि कुरुष्व में
ll
10.
– न्यास :- (मंत्र
उच्चारण के साथ सम्बंधित अंगो पर हाथ रखे):-
ॐ
वाडंग में आस्येsस्तु - मुख पर,
ॐ
नसों में प्राणोंsस्तु - नासिका के दोनों छिद्र पर,
ॐ
यक्षुर्मे तेजोsस्तु - दोनों नेत्रों पर,
ॐ
कर्णयो में श्रोत्रमस्तु - दोनों कानो पर,
ॐ
वाह्रोर्मे बलमस्तु - दोनों बाजुओ पर,
ॐ
अरिष्ठानी में अंगानी संतु - सम्पूर्ण शरीर में l
11.
- आसन :- (आसन
के नीचे सिंदूर से त्रिकोण बनाकर, मंत्र का उच्चारण करते हुए फुल और अक्षत (चावल) चढाये):-
ॐ
पृथ्वी! त्वया घृता लोकं देवि l
त्वं
बिष्णुनां घृता त्वं च धारय माँ देवि पवित्रं कुरु च आसनं l
12.
- दिशा बंधन:- (मंत्र
का उच्चारण करते हुए सभी दिशाओ में जल छिड़के जिससे आपके पूजा में कोई विघ्न न आये
और आपकी पूजा सफलता पूर्वक संपन्न हो ):-
ॐ
अपसर्पन्तु ये भूता: ये भूता: भूमि संस्थिताः,
ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया
l
अपकामन्तु
भूतानि पिशाचाः सर्वतो दिशम,
सर्वेषामविरोधेन पूजाकर्म समारंभे ll
13.
- तिलक :- तिलक के लिए
चंदन व सिंदूर का उपयोग करें। चंदन मष्तिक
को शांति व शीतलता प्रदान करता है वहीँ चंदन की सुगंध मन के नकारात्मक विचार समाप्त
करता हैं। सिंदूर हल्दी और चुना या हल्दी और फिटकरी को मिलाकर बनाई जाती है। सिंदूर लाल रंग का होता है जिसे साहस का प्रतीक माना जाता है और
जिसे माथे पर आज्ञा चक्र में लगाने पर मन को एकाग्रता देने के साथ ही साथ सामने वाले
व्यक्ति को आकर्षित करने में सहायक होती है। इसलिए इष्टदेव के बाद नाभि, कंठ व माथे
पर तिलक अवश्य करें।
14.-
दीपक की स्थापना:-
सभी तरह के पूजा में भगवान के सामने दीपक जलाया जाता है, दीपक अंधकार को दूर कर प्रकाशित
होने के साथ - साथ ज्ञान का भी प्रतीकात्मक स्वरुप होता है। जो की अज्ञान को मिटा कर
ज्ञान का प्रकाश फैलता है। दीपक के अन्दर जो तेल या घी होता है वो हमारी वासनाएं और अंहकार का प्रतीक है और दीपक की लौ के द्वारा हम
अपने वासनाओं और अंहकार को जला कर ज्ञान का प्रकाश फैलाते है। भगवान के बाये तरफ चावल
से चतुर्थ दल (पञ्च तत्व जल, वायु, आकाश, व पृथ्वी को स्थान देने के लिए) बना कर उसके ऊपर दीपक स्थापित
किया जाता है तत्पश्चात घी या तेल डाल कर रुई की बाती लगाई जाती है। और निम्न मंत्र
का जप करते हुए दीपक जलाया जाता है :-
शुभं करोति कल्याणं आरोग्यं धनसम्पदां,
शत्रुबुद्धिविनाशाय
दीपज्योति नमोस्तुते l
15.
- गुरु ध्यान :- (हाथ
जोड़कर गुरु का ध्यान व पूजा करें):-
ॐ गुरुर्ब्रम्हा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो
महेश्वराय।
गुरु: साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री
गुरुवे नम: ll
ध्यान मुलं गुरुर मूर्ति, पूजा मुलं
गुरु पदम् l
मन्त्र मुलं गुरुर वाक्यं, मोक्ष मुलं
गुरुर कृपा ll
16.
- गणपति ध्यान :-(हाथ
जोड़कर गणेशजी का ध्यान करें):-
ॐ
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णक: l
लम्बोदरश्च
विकटो विघ्ननाशो विनायक: l
धुम्रकेतुर्गणाध्यक्षो
भालचन्द्रो गजानन: l
द्वादशै
तानि नामानि य: पठेच्छुणुयादपि l
विद्यारम्भे
विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा l
संग्रामे
संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते l
17.
- गणपति पूजन:- (मंत्र
का उच्चारण करते हुए चावल, पुष्प, सिंदूर चढाये):-
वक्रतुण्ड
महाकाय कोटिसूर्यसमप्रभा ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।
18.
- आवाहन:-
अपने इष्ट देवताओं पर चावल, पुष्प चढाते हुए निम्न मंत्रो का जप कर आवाहन करें जैसे:-
ॐ श्री उमामहेश्वरयाभ्यां नमः आवाहयामि स्थापयामि
पूजयामि l
ॐ श्री महा लक्ष्मी नमः आवाहयामि स्थापयामि पूजयामि
l
ॐ श्री दुर्गाये नमः आवाहयामि स्थापयामि पूजयामिl
19.
- नवग्रह पुजन :-
(नवग्रह देवताओं पर चावल, पुष्प चढाते हुए निम्न मंत्रो का जप करें)
ब्रम्हामुरारी स्त्रिपुरानतकारी भानु: शशि: भूमि
सुतोबुध्यश्च,
गुरुश्च शुक्र शनि राहू केतु सर्वग्रहा शांति करा
भवन्तु l
20.
- पंचामृत:- दूध, दही, शहद,
घी व मिश्री को पंचामृत कहा जाता है, पंचामृत का अर्थ पांच प्रकार के अमृत से है। ये
अपने आप ही इतने गुणकारी है की कई प्रकार के रोग और दोष को दूर कर सकते है और इसका
सम्मिश्रण पुष्टिकारक होने के साथ-साथ कई तरह के रोगों के लिए लाभकारी होता है इसलिए
पूजा में पंचामृत अर्पित कर उसका ग्रहण अवश्य करें। एक बात का हमेशा ध्यान दे पंचामृत
में कभी भी घी और शहद की मात्रा सामान न डालें।
दोनों की मात्रा सामान डालने से पंचामृत बिषाक्त हो जायेगा।
21.
- भोग :- पूजा में या जब भी भोजन बनायें भोजन बनने के पश्चात
पहले इष्टदेव को भोग अवश्य लगाये और उसके पश्चात ही परिवार के साथ मिलकर भोजन ग्रहण
करें। क्योकि इष्टदेव को भोग लगाने से भोजन प्रसाद में परिवर्तित हो जाता है और प्रसाद
ग्रहण करने से मन को शांति और तृप्ति की अनुभूति
होती है। भोग के लिए अलग से मिष्ठान या अलग से भोजन बनाने की आवश्यकता नहीं
है। घर में परिवार के लिए जो भोजन तैयार हो रहा है इष्टदेव को वही प्रिय होता है इसलिए
घर के लिए बना भोजन का ही भोग लगाएं।
22.
- ॐ का उच्चारण:-
मुंह से साँस को अन्दर ले जाते हुए एवं पेट फुलाते हुए तीन बार ॐ कार की ध्वनि निकाले
l
23.
- मंत्र जप: -
किसी भी कार्य में सफलता के लिए विभिन्न प्रकार के मन्त्रों का जप किया जाता है। मंत्र
जप से शरीर में ऊर्जा का प्रवाह होता है और हम किसी भी प्रकार के कार्य को करने सफल
हो पाते है l हर प्रकार के कार्य के लिए अलग-अलग तरह के मन्त्रों का जाप किया जाता है। पर दैनिक रूप से
हम निम्न मंत्रों का जप कर सकते है। मंत्र
जप बिना माला के या फिर रुद्राक्ष के माला से कर सकते है l मंत्र जप के लिए अनामिका
उंगली व अंगूठे का उपयोग करें। सुमेरू को लांघ कर उल्लंघन न करते हुए माला वापस उलट
दे और जप करें। मन्त्रों का जाप कभी भी जोर - जोर से न करते हुए ऐसा करें की आवाज सिर्फ
आपको ही सुनाई दे ।
1. - गुरु मंत्र :- (एक माला प्रतिदिन या बिना माला के पांच
मिनिट):-
ॐ परम तत्वाय शिवाय गुरुभ्यो नमः l
2. - चैतन्य मंत्र :- (एक माला प्रतिदिन या बिना माला के पांच
मिनिट):-
ॐ ह्रीं मम प्राण देह रोम प्रतिरोम चैतन्य जाग्रय
ह्रीं ॐ नमः l
3. - गायत्री मंत्र :- (एक माला प्रतिदिन या बिना माला के पांच
मिनिट):-
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य
धीमहि धियो योनः प्रचोदयात l
24.
- विशेष -
अपने इष्टदेव से सम्बंधित मंत्र का जप भी गुरु निर्देशानुसार अवश्य करें।
25.-
ध्यान :-
जप के बाद कम से कम कुछ समय ध्यान के लिए अवश्य देना चाहिए। वैसे तो ध्यान के लिए किसी भी प्रकार की कोई तैयारी
नहीं करनी पड़ती है और न ही इसके लिए बिशेष समय, दिन, दिशा, वस्त्र, जप व आसन आदि की
ही जरुरत होती है। शांत व एकांत वातावरण में आप कभी भी ध्यान लगा सकते है। ध्यान
लगाते समय ढीले वस्त्र पहने और सर्वप्रथम सुखासन (सुविधापूर्वक किसी भी आसन में जिससे
आपको बैठने में तकलीफ न हो) में बैठ जाये,
पीठ (रीढ़ की हड्डी) को सीधा रखें और पुरे शरीर को ढीला छोड़ दें। आँखें बंद कर
लें और कुछ समय तक लम्बी-लम्बी साँस लें फिर साँस को सामान्य कर अपने गति से चलने दें
और सबकुछ भूल जाएँ , भूल जाएँ की आप कहाँ बैठे
है, क्यों बैठें है, आप कौन है या आप का इस दुनिया के किसी भी प्राणी से कोई भी रिश्ता
है। किसी भी तरह का कोई भी विचार न करें एक तरह से मन को विचार शून्य कर लें। ध्यान दे तो सिर्फ अपने श्वास पर और श्वास की गति
पर तब धीरे धीरे आपको लगेगा की आप को नींद
आ रही है और आप गहरी निंद्रा में चलें जा रहें है, यही अवस्था ध्यान की अवस्था
कहलाती है।
26.-प्रार्थना:-
ॐ गुहयाति गुहया गोप्तां त्वं गृहणस्मकृतम जपम
सिद्धिर्भवतु में देव त्वत प्रसादांमहेश्वरl
27.-आरती:- (इसके बाद
अपने इष्ट देवताओं की आरती करें आरती में एक बात का हमेशा ध्यान रखें आरती को हमेशा
बायाँ से दायाँ (घडी की तरह) और पूरी घुमाएँ l)
कर्पुर गौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्र हारं,
सदा वसंतम हृदयारविंदे भवं भवानी सहितं नमामि l
28.
- शांति पाठ:- (पूजा
के बाद निम्न मन्त्रों से शांति पाठ करें)
स्वस्ति
न इन्द्रो वृद्धश्रवाः, स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः l
स्वस्ति
नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः, स्वस्ति नो ब्रिहस्पतिर्दधातु l l
ॐ
शान्तिः शान्तिः शान्तिः l l l
29.
- क्षमा प्रार्थना:-
(पूजा में कुछ कमी रह जाने या अज्ञानतावश हुए गलतियों के लिए अपने इष्ट देव के सामने
हाथ जोड़कर निम्न मन्त्रों का जप करते हुए क्षमा याचना करें)
आवाहनं न जानामि, न जानामि विसर्जनं l
पूजा चैव न
जानामि, क्षमस्व परमेश्वरं l
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरं l
यत
पूजितं मया देवी, परिपूर्ण तदस्त्वैमेव l
(तत्पश्चात
दोनों हाथ को अगल-बगल से ऊपर उठाते हुए हाथ जोड़कर अपने इष्ट देवताओं की जयकारा लगावें
एवं षष्टांग प्रणाम करें)
नोट
–1. -
पूजा घर के साथ-साथ पुरे घर को साफ सुथरा रखें l
2.
-
शरीर शुद्धि के साथ-साथ विचारो को भी पवित्र रखें l
3.
-
पुजा में बाँस की लकडी जलाना वर्जित है इसलिए बिना बाँस के लकडी वाले अगरबत्ती या फिर
सिर्फ धुपबत्ती या दीपक का उपयोग करें।
4.
-
संभव हो तो प्रतिदिन “गीता” के
कुछ श्लोक का अध्ययन अवश्य करें।
5.
-
पूजा के पश्चात माता-पिता, गुरु एवं अपने से बड़ो का आशीर्वाद लेना भी न भूलें l
6.
-
गुरु व अपने इष्ट के प्रति पूर्ण आस्था व समर्पण की भावना रखें l
7.
-
गुरु से पूजन की विधिवत क्रियात्मक ज्ञान ले सकते है l
समस्त हिन्दुओं से आग्रह है कि पूजा
पद्धति का प्रचार प्रसार अधिक से अधिक अवश्य करें ऐसा करके आप हिन्दू धर्म का ही सहयोग
कर रहें है और हिन्दू धर्म का विस्तार करना समस्त हिन्दुओं का कर्तव्य है l
।