धर्म
(हिन्दू संस्कृति बचाने की एक कोशिश)
हिंदुस्तान!
हिन्दुओं की पवित्र भूमि, अपने संस्कृति से पुरे विश्व में पहचान बनाने वाला देश, जहाँ
सभी धर्मों के लोग बिना किसी भेदभाव के भाईचारे से निवास करते है, भाईचारे की यही भावना
भारतवासियों को एकता के सूत्र में पिरोये रखती है जिससे अटूट रिश्तों का निर्माण होता
है और रिश्तों की प्रगाढ़ता से दिलों में आस्था और विश्वास का जन्म होता है और यही आस्था
और विश्वास से जन्म होता है धर्म का!
धर्म
जहाँ एक ओर हमें अपने कर्तव्यों का बोध कराता है वही दूसरी ओर आध्यात्मिक शक्तियों
से अवगत कराता है, और हमें ईश्वर से जोड़े रखता है ।
ईश्वर
जिसे सर्वशक्तिमान, निराकार और सर्वव्यापी माना जाता है, उस अलौकिक शक्ति के प्रतीकात्मक
स्वरुप के लिए उसे भिन्न-भिन्न प्रकार के धातुओं एवं पत्थरों से विभिन्न प्रकार का
रूप देकर, मूर्ति बनाकर, पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ पूजा की जाती है, तथा उसकी
पूजा में सर्वथा पवित्रता बरती जाती है और इसी कारण से पूजा के लिए यथासम्भव अलग कक्ष
का निर्माण किया जाता है। पर इंसानों की एक दुसरे को नीचा दिखाने और एक दुसरे से आगे
बढ़ने की होड़ में अपना स्वार्थ सिद्ध कर जगह - जगह मंदिरों का निर्माण किया जा रहा है,
जिसके फलस्वरूप मंदिरों की संख्या वृद्धि होने के साथ- साथ वहां पवित्रता का अभाव हो
रहा है जिसको हम पवित्र मानते है, उसके आसपास का जगह गन्दगी से भरा रहता है लोग आते
जाते उसी के आड़ में शौच करते नजर आते है। और हम मौन रहते है ।
हजारो
रुपये का चंदा एकत्र कर गणेश पूजा, दुर्गा पूजा विश्व्कर्मा पूजा जैसे विभिन्न प्रकार
के उत्सव का आयोजन करते है जिससे हमारे धार्मिक सभ्यता को बचाये रखा जा सके। लेकिन
उस आयोजन में हम हमारे ईश्वर की पवित्रता को भूल जाते है, मूर्ति स्थापन से लेकर विसर्जन
तक पूजा स्थल में शराब पीकर, अश्लील गाने बजाकर अश्लील नृत्य करते रहते है। और हम मौन
रहते है ।
पता
नहीं धर्म के नाम पर मर मिट जाने वाले इन्सान को उस समय क्या हो जाता है जब भगवान के
आड़ में लोग उसी भगवान को लेकर गली-गली, सडकों पर भीख मांगते है, हमारे ईश्वर का भेष
धारण कर, बहरूपिया बनकर भीख मांगते है। और हम मौन रहते है।
जगह
जगह अपने ही लोग कभी कविता के आड़ में, कहानियों के आड़ में, कथा प्रवचन में तो कहीं
पर नौटंकी कर हमारे भगवान पर निंदापूर्ण टिपण्णी करते रहते है, हमारे धर्म का, भगवान
का मजाक उड़ाते है। और हम मौन रहते है।
मन
की चंचलता को दूर कर आँखों को एकाग्रता करने के साथ-साथ मन की एकाग्रता बनायें रखने
के लिए भगवान की छवि को कागज में उतारा जाता है जिससे मन में शांति का उदभव करने के
लिए पूजा किया जा सकें पर वहीँ पोस्टर, रैपर सड़क पर पैरों के नीचे फटे और दबते नजर
आते है, कहीं कचड़े के ढेरों में मिलते है तो कहीं कहीं गन्दी नालों में तैरते नजर आते
है। और हम मौन रहते है।
ईश्वर
सभी प्राणियों में सदभावना एवं दया-भाव बनाये रखने के लिए इंसान के मन में प्यार का
दीप जलाता है, जिससे चारों तरफ खुशियां ही खुशियां हो और लोग उसी ईश्वर को खुश करने
के लिए निरीह पशु- पक्षियों की बलि चढ़ाते है। और हम मौन रहते है।
पहले
हम सुना करते थे कि धर्म के नाम पर हिन्दू - मुस्लिम, सिक्ख- इसाई लड़ते थे, अब तो स्थितियां
इतनी ख़राब हो चुकी है, की एक दुसरे को नीचा दिखाने की होड़ में धर्म के नाम पर हिन्दू
- हिन्दू में झगड़े होते है, और हम मौन रहते है।
· क्या मंदिरों के निर्माण को नियंत्रित कर, पूजा स्थल को पवित्र नहीं बनाया
जा सकता है ?
· क्या गणेश पूजा, दुर्गा पूजा विश्व्कर्मा
पूजा जैसे विभिन्न प्रकार के उत्सव का आयोजन करते समय हमारे धार्मिक सभ्यता को बचाये
रखने के लिए आयोजन में शराब, अश्लील गाने बजाना एवं अश्लील नृत्य करना बंद नहीं किया
जा सकता है?
· क्या भगवान के आड़ में लोगों को भगवान
को लेकर गली-गली, सडकों पर भीख मांगना या बहरूपिया बनकर भीख मांगना जैसी घिनौनी हरकत
से रोका नहीं जा सकता है?
· क्या कविता, कहानियों, कथा प्रवचन तथा
नौटंकी के आड़ में भगवान पर निंदापूर्ण टिपण्णी कर भगवान का मजाक उड़ाने से लोगों को
नहीं रोका जा सकता है?
· क्या पोस्टर, रैपर कि छपाई को नियंत्रित
नहीं किया जा सकता है या उनके उपयोग पर कुछ प्रतिबन्ध नहीं लगाया जा सकता है?
· क्या बलि के नाम पर निरीह पशु- पक्षियों
को मारना बंद नहीं किया जा सकता है?
उपरोक्त
प्रश्न शायद आपको कडुआ लगे। और आप मुझे हिन्दू
विरोधी समझे इसके लिए मैं माफ़ी चाहता हूँ।
और आपको यह बता देना चाहता हूँ कि मेरी लड़ाई हिन्दू या हिंदुत्व् वादी विचारधारा से नहीं है और मैं न ही धर्म को लेकर कोई विवाद
करना चाहता हूँ क्योकि मैं भी एक हिन्दू हूँ, और मुझे मेरे हिन्दू होने पर गर्व भी
होता है , मैं तो उस व्यवस्था से लड़ना चाहता हूँ, उन तरीकों को बदलने की कोशिश करना
चाहता हूँ जो हमारे संस्कृति को रौंद रहा है, धूमिल कर रहा है, मैं आप लोगों को यह
बताने की कोशिश कर रहा हूँ कि ईश्वर जिसकी हम पूजा करते है जिसका सम्मान करते है उसका
न तो हम ही मजाक उड़ाये और न ही किसी को ऐसा करने दे। अपने अंदर की भावनाओं को जगाये
और हमारे भगवान को उचित सम्मान के साथ-साथ उचित स्थान प्रदान करने में सहयोग प्रदान
करें, जिससे हमारे हिन्दू संस्कृति को सही दिशा दिया जा सके। हिन्दू संस्कृति को बचाये
रखा जा सकें। ऐसी ही एक कोशिश में........
जीवन ज्योति
समिति
ग्राम
/ पोस्ट – कोंडतराई, व्हाया – भुपदेवपुर, जिला - रायगढ़ (छ. ग.) 496661
ई-मेल
– jeevanjyotisamiti2012@gmail.com
इसे
भी देखे:-
www.gokulkumarpatel.blogspot.com
No comments:
Post a Comment